धनिया की खेती एक पारंपरिक कृषि प्रक्रिया है जिसे सही तकनीकों और उचित देखभाल से सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया को हम विभिन्न चरणों में समझेंगे।
जलवायु की आवश्यकता
धनिया की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है। आदर्श तापमान 20°C से 25°C के बीच होता है। धनिया ठंडी जलवायु को सहन कर सकता है, लेकिन अत्यधिक ठंड या गर्मी इसके विकास को बाधित कर सकती है। हल्की धूप और ठंडी रातें इसके विकास के लिए लाभकारी होती हैं।
मिट्टी की तैयारी
धनिया के लिए दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH 6 से 7 तक होना चाहिए। बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना दें। मिट्टी में उर्वरता बढ़ाने के लिए 15-20 टन प्रति हेक्टेयर जैविक खाद जैसे कि गोबर की खाद का प्रयोग करें। इससे पौधों को बेहतर पोषक तत्व मिलते हैं और मिट्टी की संरचना सुधरती है।
बुवाई का समय
धनिया की बुवाई के लिए रबी का मौसम सबसे उत्तम होता है, जो कि अक्टूबर से लेकर नवंबर के मध्य तक रहता है। कुछ क्षेत्रों में फरवरी-मार्च में भी बुवाई की जाती है, लेकिन यह क्षेत्र विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है।
बीज की तैयारी
बुवाई से पहले बीज को 12-24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखना फायदेमंद होता है। इससे बीज की ऊपरी परत मुलायम हो जाती है और अंकुरण दर बढ़ जाती है। बीज भिगोने के बाद उन्हें छांव में सुखाकर बुवाई के लिए तैयार करें। इससे बीज रोग प्रतिरोधक बनते हैं और रोगों का प्रबंधन आसान हो जाता है।
बुवाई की विधि
धनिया की बुवाई मुख्यतः दो विधियों से की जाती है: छिटकवाँ और कतारी पद्दति। छिटकवाँ विधि में, बीज को खेत की सतह पर छिड़क दिया जाता है, जबकि कतारी विधि में बीजों को करीब 20-25 सेमी की दूरी पर लाइन में बोया जाता है। बीज को लगभग 1.5-2.5 सेमी गहराई पर बोना चाहिए। इससे अंकुरण बेहतर होता है और पौधों को पर्याप्त जगह और पोषण मिलता है।
सिंचाई प्रबंधन
बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई बहुत आवश्यक है। इसके बाद, मिट्टी की नमी और मौसम के अनुसार हर 7-10 दिनों पर सिंचाई करें। फूल आने की अवस्था में सिंचाई से बचना चाहिए क्योंकि यह फलियों और बीजों की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। अंतिम सिंचाई कटाई से पहले करनी चाहिए, ताकि बीज अच्छा विकास कर सकें।
उर्वरक और पोषण
उर्वरक का समुचित उपयोग धनिया की फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाता है। जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद का खेत में उपयोग करें। इसके अलावा, रासायनिक उर्वरक जैसे नत्रजन, फास्फोरस, और पोटाश का संयोजन भी उपयुक्त होता है। बुवाई के समय 25-30 किलोग्राम नत्रजन और 20-25 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर डालें। इससे पौधों की जड़ों का विकास होता है और पत्तियां हरी और स्वस्थ रहती हैं।
निराई-गुड़ाई
धनिया की फसल में नियमित निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। पहली निराई बुवाई के 25-30 दिनों बाद करें और दूसरी लगभग 20-25 दिनों बाद। निराई-गुड़ाई से पौधों को खरपतवारों से मुक्ति मिलती है और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। इससे फसल भी अच्छी होती है और पौधे स्वस्थ रहते हैं।
कीट और रोग प्रबंधन
धनिया की फसल पर कुछ प्रमुख रोग और कीट जैसे तना गलन, पत्ती धब्बा और चूर्णी फफूंद आक्रमण कर सकते हैं। इनके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक जैसे नीम का तेल उपयोगी होते हैं। इसके अलावा, रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन और बीज शोधन प्रक्रिया भी अपनानी चाहिए। इससे फसल रोग मुक्त और सुरक्षित रहती है।
फसल की कटाई
जब धनिया की फलियां पीली पड़ जाएं और उनमें से प्राकृतिक सुगंध आने लगे, तो यह कटाई का संकेत होता है। फसल बुवाई के 90-110 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई के बाद, पौधों को धूप में 2-3 दिनों तक सुखाएं और फिर मड़ाई करके बीजों को अलग करें।
भंडारण
कटाई और मड़ाई के बाद बीजों को अच्छी तरह सुखाकर ठंडी और सूखी जगह पर भंडारित करना चाहिए। भंडारण के लिए जूट के बोरे का उपयोग करें और उन्हें जमीन से कुछ ऊपर रखें ताकि नमी और कीटों से सुरक्षा हो। सही भंडारण तकनीक से बीजों की गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है।
धनिया की खेती एक संतुलित और देखभाल युक्त प्रक्रिया है। सही समय पर सभी कृषि गतिविधियों का पालन करके, किसान अच्छी गुणवत्ता और मात्रा में फसल प्राप्त कर सकते हैं। यह न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से फायदेमंद है, बल्कि रसोई में सुगंध और स्वाद को भी बढ़ाता है।